सोलर पैनल क्या होते हैं और कैसे काम करते हैं, जानिए
सोलर पैनल सनलाइट को इलेक्ट्रिकल एनर्जी में कन्वर्ट करते हैं। सोलर पैनल का उपयोग करने वाले नागरिकों को उनके ग्रिड बिजली बिलों पर छूट मिलती है। यह एनर्जी कन्वर्शन प्रोसेस पर्यावरण के लिए लाभकारी है जिससे कोई प्रदूषण नहीं होता। इस आर्टिकल में हम बात करेंगे सोलर पैनल कैसे काम करते हैं और कैसे आप ही अपने घर के लिए सबसे बढ़िया सोलर पैनल लगा सकते हैं और लाभ उठा सकते हैं मुफ्त बिजली का।
सोलर पैनल कैसे काम करते हैं ?
सोलर पैनल एक कम्पलीट सोलर सिस्टम के पार्ट के रूप में लगाए जाते हैं जिसमें सोलर पैनल, सोलर इनवर्टर, सोलर चार्ज कंट्रोलर और सोलर बैटरी शामिल हैं। सोलर पैनल में सोलर सेल होते हैं, इन्हें फोटोवोल्टिक (PV) सेल के नाम से भी जाना जाता है। जब सूरज की रोशनी इन सेल पर पड़ती है तो वे फोटोवोल्टिक इफ़ेक्ट के कारण इलेक्ट्रॉनों को फ्री करना शुरू कर देते हैं जिससे बिजली का प्रोडक्शन शुरू हो जाता है।
सोलर पैनल डायरेक्ट करंट (DC) के रूप में बिजली जनरेट करते हैं। सोलर पैनलों द्वारा प्रोड्यूस की गयी बिजली को बैटरी में स्टोर किया जा सकता है। यूजर अपनी ज़रूरतों के आधार पर बैटरी चुन सकते हैं। बैटरी में स्टोर की गयी एनर्जी का उपयोग पावर बैकअप के रूप में किया जाता है और इसे DC फॉर्म में भी स्टोर किया जाता है। सोलर पैनलों द्वारा प्रोड्यूस या स्टोर की गयी बिजली का उपयोग सीधे एप्लायंस को चलाने के लिए नहीं किया जा सकता है क्योंकि हमारे घर के ज्यादातर इक्विपमेंट अल्टेरनेटिंग करंट पर चलते हैं। DC को AC में बदलने के लिए एक इन्वर्टर का उपयोग किया जाता है जिससे इसे घर के एप्लायंस के लिए उपयोग किया जा सकता है।
एक सोलर सिस्टम में सोलर चार्ज कंट्रोलर का उपयोग रेगुलर इन्वर्टर वाले सिस्टम में किया जाता है। ये कंट्रोलर दो टेक्नोलॉजी में आते हैं – PWM (पल्स विड्थ मॉड्यूलेशन) और MPPT (मैक्सिमम पावर पॉइंट ट्रैकिंग)। PWM कंट्रोलर करंट को कंट्रोल करते हैं जबकि MPPT कंट्रोलर वोल्टेज और करंट दोनों को कंट्रोल कर सकते हैं। ये कंट्रोलर सोलर पैनलों को इन्वर्टर से जोड़ते हैं ताकि यह सिस्टम बिना किसी समस्या के सही से चले।
सोलर सिस्टम के टाइप
ऑन-ग्रिड सिस्टम
एक ऑन-ग्रिड सोलर सिस्टम में आप पावर बैकअप स्टोर नहीं कर सकते। सोलर पैनल द्वारा प्रोड्यूस की गयी बिजली ग्रिड के साथ शेयर की जाती है और आपके द्वारा शेयर किए गए अमाउंट की कैलकुलेशन नेट मीटर का उपयोग करके की जाती है। यह सेटअप आपके बिजली बिल पर पर्याप्त छूट और फाइनेंसियल बेनिफिट भी प्रदान कर सकता है। सरकार इस कनेक्शन के लिए सब्सिडी प्रदान करती है। इसका नुकसान यह है कि अगर ग्रिड से बिजली चली जाती है तो आप सोलर पैनल द्वारा जनरेट की गई बिजली का उपयोग नहीं कर सकते।
ऑफ-ग्रिड सिस्टम
एक ऑफ-ग्रिड सेटअप में सोलर पैनल द्वारा जनरेट की गयी बिजली को बैटरी में स्टोर किया जाता है। आप अपने घरेलू लोड के आधार पर रेटिंग वाला इन्वर्टर सेट कर सकते हैं। अगर ग्रिड की बिजली चली जाती है तो आप अपने एप्लायंस को चलाने के लिए बैटरी से स्टोर की गयी बिजली का उपयोग कर सकते हैं। इस सेटअप में नेट मीटरिंग नहीं है। अगर नेट मीटरिंग को जोड़ा जाता है और ग्रिड से जोड़ा जाता है तो यह एक हाइब्रिड सोलर सिस्टम बन जाता है।
सोलर पैनल के टाइप जानिए
घरेलू उपयोग के लिए आप इन प्रकार के सोलर पैनल में से चुन सकते हैं।
पॉलीक्रिस्टलाइन सोलर पैनल सबसे पुरानी टेक्नोलॉजी के पैनल होते है और अपनी कम कीमत के कारण सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाते है। ये नीले रंग के होते हैं और इनकी एफिशिएंसी 8-15% तक होती है। फिर आते हैं मोनोक्रिस्टलाइन सोलर पैनल जो काले रंग के होते हैं और इनकी एफिशिएंसी 22% तक होती है।
ये ज़्यादा महंगे होते हैं लेकिन कम जगह की ज़रूरत होती है और खराब मौसम की स्थिति में भी बिजली पैदा कर सकते हैं। फिर आते हैं सबसे एडवांस और हाई-टेक बाइफेसियल सोलर पैनल जो दोनों तरफ़ से बिजली पैदा कर सकते हैं। इनकी एफिशिएंसी मोनोक्रिस्टलाइन पैनल के समान होती है और इन्हें छोटी जगहों पर भी लगाया जा सकता है।
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